With love in our heart, we flow gracefully through life.
Harold W. Becker."अपने दिल में प्यार लिए हम जीवन में शान से बहते हैं।"
हमारे जीवन का एक प्रवाह होना चाहिए। जीवन बहते रहता हैं। जन्म से शुरु हुई यात्रा की यहीं गति होती हैं। प्रकृति के सान्निध्य में जीव- जगत का बहते रहेना तय हैं। इसे हम प्राकृतिक सिद्धांत कहे तो भी गलत नहीं हैं। मगर उनमें कुछ न कुछ फ़र्क जरुर होता हैं। ये फ़र्क वाली बात को गहराई से समझ ने का प्रयास करते हैं। जीवन को शानदार तरीके से जीना है तो दिल में प्यार का गीत होना चाहिए। प्यार जीवन का संगीत हैं। जीवन के अनूठे रंग भी होते हैं। जीवन में प्रकृति के सबरंग-सभी स्वर एकरुपता से भरे हो तो कुछ शानदार घटित हो सकता हैं।
सृष्टि में विविधता हैं लेकिन ये एकरूप हो जाती है तो ही सुंदर लगती हैं। यहां केवल हम फूलों की बात करें। सृष्टी में अनेक प्रकार के फ़ूल हैं, खुशबु से और रंगरुप से अलग हैं। लेकिन जब एक बागान में वैविध्य घुलमिल जाता हैं, तब जो दृश्य घटित होता है, वो कितना सुंदर होता हैं ! मानो, खुशबु और रंगो का मेला लग गया हो। हम फुरसत में बागान में जाना पसंद करते हैं। या फिर थोड़े बहुत परेशान है तो वहाँ जाकर सूकून ढूंढने का प्रयास करते हैं। इसमें कोई फिलसूफी वाली बात ही नहीं हैं। फिर भी मनुष्य जीवन को आनंद पूर्वक जीने की समझ इन्हीं में से प्रगट होती हैं।
मनुष्य की वैविध्यता...रूप ओर रंग, भाषा एवं भूषा, खानपान, रहन-सहन में कितने भेद हैं ! भौगोलिक स्थिति या पर्याप्त वातावरण में जीना हैं। जो मिल रहा है उसमें जीना हैं। ऐसे गुजर-बसर करती कईं जिंदगियों से संसार वैविध्यमान हैं। फूलों की विविधा में एक चीज कॉमन है रंग-सुगंध ! वैसे ही जीवन में एक चीज कॉमन है, प्यार-दुलार-प्रेम जो भी कहो...! प्रकृतिगत सीमा रेखा में जीना है, तो उनके मूलभूत तत्व को हम कैसे छोड सकते हैं ? जब उसे ही छोड दिया तो जीवन में क्या कुछ बाकी रहेगा ?
सुंदर जीवन की शानदार जीवन की पहचान प्रेम से हैं। प्रेम दे सकता हैं वही प्रेम पाता हैं। दिल में प्यार लेकर के चलना आसान भी नहीं हैं। अपने ममत्व को छोडना पड़ेगा, स्वार्थरहित होना पड़ेगा, खुद से पहले दूसरे का विचार करना होगा। शायद अपनी पसंद-नापसंद से नाता तोड़ना होगा। समर्पण शब्द से बढ़कर कृति बने तब प्यार होता हैं, यह छोटी-मोटी बात है ही नहीं। मैं तो समझता हूं की जैसे ईश्वर से मिलन, तपस्वी ही संभव बना सकते हैं। वैसा ही प्यार के बारें में भी हैं। प्रेम संबंध ईश्वर के जुड़ाव से कम नहीं है इसका कारण अब समझ में आ रहा हैं। बुद्धि से या हृदय से भी..!
प्रकृति में भी संतुलन बना रहे ये बिल्कुल जरुरी हैं। असंतुलन या अनबेलेन्स की स्थिति मूल वस्तु या विचार को क्षति पहुंचाती हैं। इससे अदृश्य ईश्वर की योजनाएं बिगड़ती हैं। चाहे, वो पर्यावरणीय प्रदूषण समस्या, मानव जीवन संदर्भित समस्या हो। ऐसा घटित होता है उसका निवारण करना असंभव हो जाता हैं। जीवन का संतुलन भी जरुरी हैं। जीवन की उच्चतम अवस्था ही सबको पसंद आती हैं। चाहे वो अपने जीवन की हो या दूसरे के जीवन की उच्चता हो। जीवन की बहतरीन अवस्था प्रेम हैं। जीवन का शानदार संतुलन प्रेम से भी संभव हो सकता हैं। यह भी प्रकृति का फ़रमान समझो।
प्रकृति की सारी दृश्यता या फिर भीतरी अवधारणा का यहीं संदेश हैं। 'जीवन और प्रकृति' में मैं बहुत बड़ी साम्यता देख पा रहा हूँ। इससे शायद कुछ सोच पा रहा हूं या फिर लिख पा रहा हूं। यहाँ इस छोटे-से ब्लॉग में अच्छे शब्द विचार घटित हुए हैं इनमें मेरी भूमिका केवल साक्षीभाव की समझेंगे, तो आनंद होगा। कुछ अच्छी बातों में समय व्यतित होता है, ये भी 'प्रेमावस्था' की अभिव्यक्ति का निमित्त हैं। कुछ अच्छे शब्द विचार के प्रगट का अवसर भी ऐसे घटित नहीं होता हैं। यहीं जीवन का मूल प्रवाह हैं। सद्गुरु जग्गी वासुदेव की सुंदर विचार पंक्तियां रखकर मेरी सोच को अनुमोदित भूमिका प्रदान करता हूं।"किसी भी चीज के प्रति अगर आप स्वेच्छा से रेस्पॉन्ड करते हैं, तो वह आपकी हो जाती है। यदि आप हर उस चीज के प्रति जागरूकतापूर्वक रेस्पॉन्ड करें जिसके संपर्क में आप आते हैं, तो पूरा ब्रहांड आपका हो जाता है।" ब्रह्मांड जो भी देगा वो शानदार होगा।
इन्हीं विचारो की संगत में...!
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli
Gujarat.
INDIA.
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Thanks 👏 to read blog.I'm very grateful to YOU.