August 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Tuesday, August 26, 2025

Power of Life...!
August 26, 2025 5 Comments

 Strength is silent, flight is loud.

शक्ति मौन है, उड़ान जोरदार है।

पंछीओं में मुझे बाज़ पसंद हैं। सृष्टि के सभी जीवों की संघर्षगाथा अलग अलग हैं। सबको अपने संघर्ष होते हैं। और सबको अपना आनंद भी...! लेकिन बाज़ की बात ही कुछ और हैं। आज उनके बचपन की हकीक़त से वाकिफ कराने जा रहा हूँ। वैसे तो आप सब जानते हैं कि बाज के जीवन पर आधारित मेरी एक नॉवल प्रकाशित हुई हैं। "फ्लाईंग मार्वल" एक बाज की प्रेमभरी उड़ान...ऐसा उसका शिर्षक हैं। ये नाॅवल गुजराती और हिन्दी दोंनो भाषाओं में ऑनलाईन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। बाज़ मुझे बेहद पसंद हैं। उसका कारण गीताकार का यह श्लोक भी हैं। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय-१० विभूति योग का यह श्लोक भावार्थ के साथ पढ़े।

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालःकलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥१०-३०॥

भावार्थ : मैं सभी असुरों में भक्त-प्रहलाद हूँ, मै सभी गिनती करने वालों में समय हूँ, मैं सभी पशुओं में सिंह हूँ, और मैं ही पक्षियों में गरुड़ हूँ।


वैसे गरुड़ और बाज़ में थोडा-सा अंतर हैं। लेकिन शक्ति और गति की तुलना में ये दोनों एक ही है। उनका देखाव भी एक जैसा ही हैं। यहां मैं बाज़ को ध्यान में रखकर ब्लोग का विस्तार कर रहा हूँ। बाज़ की शक्ति साइलेंट होती हैं, मौन हैं। लेकिन उसकी उड़ान शानदार होती हैं। बाज़ की परवरिश में अच्छी ट्रेइनिंग का खास ख्याल होता हैं। बाज़ के बच्चे को उनकी माँ ही ट्रेइनिंग देती हैं। जब बच्चा घोसले के बाहर आकर थोड़े बहुत पंख फडफडाता हैं तब उनकी माँ को पता चल जाता हैं, की बच्चा अब उड सकता हैं। बच्चे को उनकी माँ खुद अपने पंज़ों से उठाती हैं। और आसमान में उड़ान भरने लगती हैं। काफी ऊंचाई के बाद वो बच्चे को पंजो की पकड से छोड़ देती हैं। छोटा-सा बाज हैरान हो उठता हैं। अपने पंख को सिकुड़ते हुए और अपने आप ही खुले हुए पंख से गभरा जाता हैं। वो निःसहाय तरीके से धरती की ओर आ रहा होता हैं। जब एकदम जमीन से टकराव की स्थिति आती है तब माँ उसे पंजो से पकड लेती हैं। ये नित्य होता रहता हैं। कुछ दिनों के बाद बच्चे में हिम्मत बढ़ने लगती हैं। उसे आसमान से प्यार होने लगता हैं। उसे माँ से मिले दिल-धड़क प्रशिक्षण से आनंद मिलता हैं। उसके हौंसले में विश्वास भरता हैं। विश्व के सभी सजीव सृष्टि में सबसे बेहतर शिक्षा बाज़ की होती हैं। फिर बाज आसमान का राजा कहलाता हैं। ऊँची उड़ान से उसे प्यार होता रहता हैं। आसमान उसका घर ही बन जाता हैं। मेरी नाॅवल का बाज बोलता हैं : "हम बाज, सीखनेवाले हैं इसलिए उडनेवाले हैं।"

जो सिखते रहता हैं वही कमाल करता हैं, धमाल भी..! सिखने वालों में एक दृष्टि आकार धारण करती हैं। उनकी क्रियाओं में बड़ा उछाल होता हैं। उसके इरादों में जान होती हैं। उनके रास्ते भले ही कठिनाई से भरें हो। संघर्ष के साथ वो गहराई वाला रिश्ता कायम कर लेते हैं। सफलताओं के मुकाम ऐसे तय किए जाते हैं। हौंसलो में जान होती हैं, उनकी उड़ान शानदार होती हैं। इसलिए बाज सबसे ऊपर हैं। सभी पंछीओं में वो राजा कहलाता हैं। बाज के जीवन का संघर्ष भी लाजवाब होता हैं। उसके बारें में कभी बात करेंगे।

मुझे बाज़ के जीवन से इतना समझ में आया हैं की जितना बड़ा संघर्ष उतनी बड़ी उड़ान..! संघर्ष से डरो मत, भागो मत, उसका डटकर सामना करो। फिर देखिए एक साफ-सुथरा, निडर चरित्र आकारित होगा। संघर्ष में डालने वालों को मैं सलाम करता हैं। क्योंकी एक होनहार चरित्र के निर्माण में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी होती हैं। विश्व के कईं ऐसे लोग हैं जिनको बेरहमी से प्रताड़ित किया जाता हैं। लेकिन प्रकृति के सिद्धांत के मुताबिक पीड़ाओं में से ही उत्तम इन्सान पैदा होता हैं। और ये सिस्टम चलती ही रहेगी। प्रकृति के कईं तत्वों या जीवंत जीव को देख लिजिए। कालक्रम ने उन्हीं के सामर्थ्यवान इतिहास को संगृहीत किया हैं। बाज की तरह संघर्ष को गले लगाते हुए...!

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Wednesday, August 20, 2025

Life is a wonderful journey..!
August 20, 2025 2 Comments

Do not look for the finish line.

With Life, the Journey itself is the Destination.
SADGURU.
"अंतिम रेखा की तलाश मत करो। जीवन में, यात्रा ही मंजिल है।"


जीवन यात्रा हैं और बेहतरीन यात्रा हैं। जन्म-जन्मांतर के निमित्त कहे या हम नहीं जानते वैसी ईश्वर की कोई योजना कहे..! जिनके तहत ये जीवन मिला हैं, हैं बड़ा ही सुहाना...! आज मुझे सद्गुरु ने फिर एकबार ब्लोग का विषय दिया हैं। सद्गुरु जैसे ऋषियों के कारण हम जैसे लोगों को विचार मिलता हैं। चिंतन मनन व्यापार मिलता हैं। जीवन की दृष्टि खिलती हैं। जीवन का कोई अंतिम स्थान ही नहीं हैं। जीवन ठहराव के बीना अनवरत बहती नदी जैसा हैं। सागर के मिलन के बाद भी जल की यात्रा ठहरती नहीं हैं। खारेपन को छोडकर तपना हैं फिर एकबार बारिश बनके धरती पर बरसाना हैं। जीवन की यात्रा भी कभी थमती नहीं..! एक जीवन के बाद दूसरा जीवन, जैसे जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म...! सद्गुरु इसी कारण जीवन को यात्रा कहते हैं। और ये यात्रा ही मंज़िल हैं ऐसा भी कहते हैं।

हम जानते हैं कि एक जीवन जन्म से मृत्यु पर्यंत प्राप्ति की दौड़ में लगा रहता हैं। वो भी एक जीवन की आनंद यात्रा हैं। मनुष्य इस जीवन की यादें लेकर दूसरे जीवन की यात्रा में निकल पड़ता हैं। एक जीवन का शरीर पंचमहाभूतों में विलिन हो जाता हैं, इसे हम मृत्यु कहते हैं। सद्गुरु पूरे जीवन को यात्रा कहकर हमें हमारी आज पर या इस जन्म की हमारी मानवीय सभ्यता पर केन्द्रित होना कहते हैं। जीवन के आनंद के प्रति जागरूक होने की बात करते हैं। एक शांत झरने की तरह उछलते, खेलते बस बहने की बात सिखाते हैं। इसका मतलब कोई ऐसा हरगिज न करें कि जीवन में कुछ प्राप्त नहीं करना हैं। जीवन में भीतर उठती आशाओं को पालना हैं, उसे पूरी करने का आनंद भी लेना हैं। जीवन की यात्रा में मिले ये बेहतरीन मुकाम कहलायेंगे। चलों...एक बहुत ही सुंदर विचार से भरी कविता पढ़ते हैं। जिसमें रचनाकार की यायावर के साथ बातचीत हैं।

ले गए तुम कई बार साथ में,
हमें अपनी यात्राओं पर,
चित्रकूट, वृंदावन, सौराष्ट्री सागर-तट
या कहीं और भी,
पर यह कौन-सी यात्रा है ?
यायावर !
जहाँ तुमने,
अकेले ही असंग जाने का निर्णय लिया,
और चल भी दिए ?

● स्रोत : पुस्तक : रचना संचयन (पृष्ठ ११२) संपादक : प्रभाकर श्रोत्रिय, रचनाकार : श्री नरेश मेहता, प्रकाशन : साहित्य अकादेमी संस्करण : 2015

कविता का विचार और सद्गुरु जी के विचार में मुझे साम्यता दिखी हैं। जीवन पंछी की तरह गाता, मुस्कुराता और आसमान में मस्तीभरी सैर करनेवाला होना चाहिए। लेकिन रचनाकार की संवेदन को पकडना। उनके शब्दों में यायावर की असंग उड़ान से खेद हैं। एक तरफ जीवन का कोई साथी-संगी अपनी अंतिम यात्रा पर निकल गया हो और संगति का साथ छूट गया हैं, ऐसी भी संवेदना प्रकट होती दिखाई पड़ती हैं। हमें इतना समझ में आ रहा हैं। जीवन ही यात्रा हैं वो यात्रा अनवरत हैं। हाँ, एक भौतिक शरीर की यात्रा रुक जाती हैं, जीवन की नहीं...!

यात्रा 'अनुभव और अनुभूति' से जुड़ी हैं। यात्रा के दौरान कई ऐसे हादसों से गुजरना पड़ता है इसमें सुख-दुख का तालमेल बना रहता हैं। कहीं आनंद हैं, कहीं पीड़ा, कहीं हर्ष-शोक-निराशा सबकुछ हैं। कहीं पर प्राप्ति-अप्राप्ति भी हैं। कहीं पर क्रोध हैं, असूया हैं। कहीं पर दूसरों के प्रति आदर हैं, प्रेम भी हैं। कहीं पर घृणा रक्त बनकर बह रही होती हैं। कहीं पर घृणा अत्यंत क्रोध में परिणमित होकर विकृति बन जाती हैं। अपने खुद की यात्रा को खुद ही विचित्रता से घेर लेते हैं। ऐसे लोगो की जीवन यात्रा समाज को जीने लायक नहीं छोड़ती। इस सत्य को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हैं। क्योंकि यहां साफ-सुथरे लोगो ने अपना आशियाना भौतिक चकाचौंध से सजाया हैं। वो जीवन को यात्रा से कम ऐयाशी ज़्यादा समझते हैं। उनको  अपने जीवन की भीतर की आवाज के मुताबिक जीना होगा..! दोस्तों, इसे सलाह सूचन या कोई फिलसूफी भरी बातें मत समझना केवल एक विचार का वैयक्तिक समर्थन समझना...!

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Wednesday, August 13, 2025

Ethics is power of life.
August 13, 2025 4 Comments


नैतिकता जीवन की शक्ति है..!

नैतिकता के बारें में बात करने की मेरी वैयक्तिक क्षमता है कि नहीं ये जानते हुए भी लिख रहा हूं। क्योंकि मुझे इतना पता हैं नैतिकता जीवन का आधार होने के बावजूद उसे धारण करना पडता हैं। मैं नैतिक़ हूँ ये नाप ने का कोई पैरामिटर्स बना नहीं। एक मूल्य सत्य की बात करते हैं। सत्य सनातन हैं और शाश्वत भी हैं। अब सत्य को धारण करना, एक मूल्य को या अपनी वैयक्तिक नैतिकता बढ़ाने का प्रयास करना। जन्म से सत्य हमारे साथ झुडा नहीं उसे जोड़ना पडता हैं। सत्य की आराधना नहीं करनी हैं उसका आचरण करना हैं। एक बात समझनी चाहिए कि एथिक्स या मूल्य से हमारी पहचान बनती हैं। हमारी पहचान, रुतबा या और कोई उपलब्धि से एथिक्स में कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। मूल्य-मूल्य ही रहते हैं, उससे हमारी कीमत हमारा मूल्य बढ़ सकता हैं। महात्मा गांधी हमारे प्यारे बापू के पहले भी सत्य था। बापू के पहले राजा हरिश्चंद्रजी ने सत्य का पालन किया था। दोनों सत्यवादी भी कहलाये थे। मतलब एक सत्य नाम के मूल्य के सभानतापूर्वक के आचरण से व्यक्ति की पहचान बनती हैं। उसके कारण सत्य में कोई उठाव या गिरावट नहीं आती। सत्य सत्य ही रहेगा। इसी कारण मूल्य में कोई फ़र्क नहीं आता। यहां केवल उदाहरण के तौर पर सत्य की बात रखी हैं। ये बात मेरी समझ में आई इसीलिए ब्लॉग का विचार निमित्त प्रगट हुआ।

मैंने गूगल पर Ethics एथिक्स की कुछ डेफिनिशन इस प्रकार प्राप्ति कि हैं।  उसको पढकर आगे बढ़ते हैं। "The study of what is right and wrong in human behaviour."

"नीतिशास्त्र मानवीय व्यवहार में उचित-अनुचित की मीमांसा।"

"Beliefs about what is morally correct or acceptable."
"उचित-अनुचित का विचार।"

 "Athicse gives happiness..!" नैतिकता खुशी देती है।



 With great pleasure....photo by Freepic.

एथिक्स एक्शन हैं। उचित व्यवहार हैं। जो हमारे भीतर को आनंदित करे वो वर्तन है। जीवन को अच्छी पहचान देकर सम्मानित प्रतिभा का विकास करे वो एथिक्स है, मूल्य हैं। वैसे तो एथिक्स का एक अर्थ 'नीतिशास्त्र' हैं। नीति को हम मूल्य भी कह सकते हैं। इस के कारण एथिक्स को एक अर्थ में 'मूल्यशास्त्र' भी कह सकते हैं। 'आचारशास्त्र' भी कहते हैं।

एथिक्स जीवन की प्राण शक्ति है। मनुष्य जीवन के लिए एक अच्छे जीवन व्यवहार के लिए ये बहुत ही कारगर हैं। उचितता ईश्वर को भी पसंद होगी..! इसलिए प्रकृति उचितता से भरी हैं। नदी का काम केवल बहना हैं। उससे अलाभ से ज़्यादा लाभ ही हैं। कभी कभार विनाश के कारण थोड़ी बहुत बेबसी का सामना करना पड़ता है फिर भी नदी के कारण अनगिनत लाभ हैं। ये प्रकृति की मौन उचितता हैं।

आज समय थोडा विचित्र हैं। 'एथिक्स' की बात सुनने में अच्छी लगती हैं। लेकिन थोड़ाबहुत उचितता से जीना चाहा आप कोने में चले जाएंगे। क्योंकि एथिक्स से सबको डर लगता हैं। उसको सम्मान देकर या कोई इनाम-अकराम- पुरस्कार देकर सम्मानित करके समाज अपना दायित्व निभा रहा हैं। अपने आप इस स्थिति को भीतर से देखना का प्रयास करें। शायद मेरी बात सही लगेगी। हाँ, एकबात ओर भी देखने में आती है, उचितता से जीने का प्रयास करने वाले व्यक्ति के जीवन को छानबीन करना। कहीं पर उसकी भूल सामने आए तो बात बन जाए। उसकी अच्छाई के सामने बुराई का खेल खेला जा सके। इन सबको मरते-नज़र रखते हुए हमे जीना हैं। अच्छे विचार-वर्तन को पालते हुए चलते रहना हैं। देखना हैं, ईश्वरीय सिद्धांत के खिलाफ कोई जीत पाता है ? या एक समूह की अंदरुनी चापलूसी से खुशी पाकर बनावटी हँसी से जीता जा सकता हैं क्या ? इसे हम 'शाहमृगवृत्ति' कहेंगे तो ठीक रहेगा। डर के माहौल में, तूफान में शिर छिपाकर "मैं सुरक्षित हूं" का अहसास बनाए रखना, बचते रहेना..! इसका आनंद लेनेवाले लोगों के जीवन की उन्नति के लिए प्रार्थना...! ये मेरी विचार उचितता हैं।

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Wednesday, August 6, 2025

It's hard to keep wanting..!
August 06, 2025 4 Comments

 

मुश्किलें हरहाल में अपने भीतर एक रास्ता छिपाकर आती हैं...भरोसा कायम होना चाहिए। 


'कठिन है चाहते रहना' हिन्दी रचनाकार के पेज पर से ये कुछ पंक्तियाँ मुझे मिली हैं। उनका ऋण स्वीकार करते हुए आज के ब्लोग का विचार विस्तार करता हूं। कुछ वस्तु या फिर व्यक्ति को पा लेना एक उपलब्धि हो सकती हैं। लेकिन उसे जीवनभर संभालकर रखना थोड़ा मुश्किल हैं, जनाब। जैसे चाहना एक सरल प्रक्रिया है लेकिन चाहते ही रहना बड़ी धीरज वाली बात हैं। ऐसा कब होता है जब समर्पण की मर्यादा को लांगकर जीया जाय। ऐसे जीना संभव हैं फिर भी लोगों ने इसे असंभव ही बना दिया हैं। और अपनी ही मर्ज़ी के मंजर को अंजाम दे रहे हैं।



कहीं पढ़ने में आया था। सबसे अच्छे इन्सान की पहचान क्या हो सकती हैं, उनके सवाल का उत्तर था, "जिसका दोस्त पुराना और नौकर पुराना वो इन्सान पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सकता हैं।" एक ही लाइन में जीवन की बहुत बडी फिलसूफी समझ में आ गई। जीना इसी का नाम हैं। दोस्त-यार दूंढने से नहीं मिलते। दो व्यक्तिओं में पारस्परिक ऐसा कुछ आकर्षण बन जाता है। इसे में व्यक्तिगत रुप से अलौकिक बेला समझता हूं। उनमें स्त्री-स्त्री, पुरुष-पुरुष और स्त्री-पुरुष भी हो सकते हैं। उनके बीच कोई धर्म-अर्थ काम का दायरा नहीं होता। जाति-पंथ-संप्रदाय का दायरा नहीं होता। वहाँ नितांत प्रेम गांभीर्य से भरी सरिता की तरह बहता जाता हैं। किनारों को जोडता हुआ, प्रकृति को पोषता हुआ। कईं चिड़ियां के गीत का कारण बनते हुए। कई वृक्षों की मीठाश संजोए हुए नदियां बहती है, वैसे ही प्यार बढ़ता ही रहता हैं।

जिसे संबंध के अनुराग का फूल मिला है उसे संभालना सीखना चाहिए। नहीं सीखे तो जीवन भर की पीडाओं का सामना करना पड़ेगा। प्रायः प्रेम से 'जीवनआनंद' मिलता हैं। उसे कायम करने की जिम्मेदारी वैयक्तिक रुप से हमारी ही होगी। उसमें ईश्वर जो चाहते हैं, वैसा ही मनुष्य जीवन होगा। लेकिन वैयक्तिक स्वार्थवृति बढ़ती है तो संबंध का टिकना नामुमकिन हो जाता हैं। एकबार संबंध को हृदय से महसूस करना चाहिए। उसकी अनुभूति के लिए समय निकालना चाहिए। फिर देखें जीवन की परेशानियां कैसे समाप्त होती हैं। संबंध किसी भी प्रकार का हो, लेकिन वो कभी दुःखकारक नहीं होता। हमारा नजरिया बदलता है तब उसमें खोट आती हैं। एक व्यक्ति जब अच्छे संबंध की शुरूआत करता है, सामनेवाला शायद उसकी भावनाओं को समझ नहीं पाता तब एक स्थिति पैदा होती है जिसमें पीड़ा ही होती हैं। लेकिन जो संबंध के लिए तरसता रहता है उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वो अपने आनंद में पीछे हट जाएगा। ये संबंध वाला फंडा है, बहुत कीमती हैं संबंध...इतना मैं समझ रहा हूं।

जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल आर्थिक उपार्जन ही नहीं हैं। तर्कसंगत बातों से Narrative मिथक या काल्पनिक कथात्मकता से दूर रहना ही अच्छे संबंध की प्राप्ति के लिए कारगर हैं। बाकी सबको अपनी वैयक्तिक या संगठनात्मक मनसा पूरी करने के षडयंत्रों का भोग बनना ही पड़ेगा। इसके कारण शारीरिक विकृति एवं सामाजिक विकृतियां ही बढ़ेगी। ईश्वर है की नहीं इसके प्रमाण ढूंढने के बजाय उसकी असरों से झुडे रहना होगा। तो संबंध को पा सकते हैं और प्रेम टिक भी सकता हैं। बाकी ईश्वर की चापलूसी भरें ढोंग क्या परिणाम लायेंगे आप स्वयं ही सोच सकते हैं।

मुझे लगता है संभलना है तो संभालना भी जरुरी होगा। और चाहत को कायम करने हेतु कैसे चाहना हैं..!? कैसे संबंध में टिकना हैं, कैसे संबंध को टिकाना हैं वो सीखना ही पड़ेगा..! एक बेहतरीन जीवन के लिए ये उपाय ठीक रहेगा क्या ?!?


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Tuesday, August 5, 2025

Thanks Netherland.
August 05, 20250 Comments

Greetings to all my brothers and sisters worldwide.


Especially, I extend my deepest respect and gratitude to the people of the Netherlands and other countries where my work is appreciated. I am Dr. Brijeshkumar, a humble educator and writer from a small village in India. Despite facing challenges, I have achieved academic success and continue to work as a teacher, driven by my passion for education.


As a columnist for two prominent Gujarati newspapers and a novelist, I am committed to using my writing to inspire and educate. My dream is to provide quality educational and healthcare facilities to those in need. Although I face struggles due to circumstances beyond my control, I believe that thoughts and ideas can transform lives. I am satisfied with my personal life, but I am driven by a vision to make a positive impact.


This is my blog link. 

https://drworldpeace.blogspot.com

'Anandvishva Sahelgah', has reached a global audience, and I am grateful for the support from countries like the Netherlands, Russia, USA, Singapore, Hong Kong, Germany, Canada, Sweden, Ireland, UK, and Mexico. So,  I humbly request the support of affluent individuals, athletes, artists, and leaders to help me realize my vision. Together, we can create a brighter future. In return for your support, I assure you that I will take care of your stay and hospitality when you visit India. I look forward to your response and support. I will share my account details after discussing with you. Contact me with sincerity:


Dr. Brijeshkumar Chandrarav

Gujarat, India

Mobile: +91 9428312234

Website: https://drbrijeshkumar.org

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Thanks Netherland.
August 05, 2025 3 Comments

 ब्रह्मांड के मेरे भाईओं और बहनों,


और नीदरलैंड की भूमि को वंदन करता हूं..! साथ दूसरे देशो का भी धन्यवाद करता हूं। वंदन करने का कारण आगे पढ़े।

मैं डॉ. ब्रजेशकुमार भारत के एक छोटे-से गाँव से हूँ। संघर्ष भरी स्थिति में उम्मीद के सहारे शैक्षिक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। आज भी शिक्षा से झुडा हूं। शिक्षक के रुप में काम कर रहा हूं। कुछ करने की उम्मीदें और अपने जरुरियातमंद बंधुओं के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य विषयक सुविधा करने का मन हैं। इसके लिए मेरे पास आर्थिक व्यवस्था नहीं हैं। हां, ईश्वरने मुझे लिखने की शक्ति दी हैं। विचार मनुष्य जीवन को बदल सकता हैं। मैं एक नाॅवेलिस्ट हूं साथ में भारत के एक स्टेट गुजरात के प्रमुख दो अखबारों में काॅलमिस्ट के रूप में काम कर रहा हूं। मेरे देश भारत से भी मेरी कईं उम्मीदें हैं। लेकिन कुछ जन्म आधारित अवहेलना और मुझे समज में न आए ऐसी स्थिति के कारण एक कोने में ही संघर्षरत हूं। मेरे वैयक्तिक जीवन से मैं संतृप्त हूं। लेकिन ईश्वर के द्वारा दिये गए विचार और कुछ करने की लगन से थोड़ा परेशान हूं।  फिर भी आज उम्मीद से भरा हूं। विश्वास हैं कोई न कोई रूप से आर्थिक योगदान मिलेगा। निश्चित विचार उसका रुप ले ही लेता हैं। शायद इसका मैं ज़रिया हूं। केवल निमित्त हूं।

मैं मेरी लेखनयात्रा एवं विचारयात्रा से लोगों को मदद करना चाहता हूँ। मेरे विचार को मूर्तरुप देना चाहता हूं। इसीलिए मैंने ब्लॉग लिखने का माध्यम चूना हैं। मेरे गूगल एनालिसिस में नीदरलैंड, रशिया, युनाइटेड स्टेट USA, सिंगापुर, हांगकांग, जर्मनी, कनाडा, स्वेदन, आयर्लेन्ड, युनाईटेड किंगडम UK, मेक्सिको जैसे कईं धनी देशों में मेरा ब्लॉग ज्यादा पढ़ा जाता हैं। मैं हृदय के उत्कृष्ठ भाव से उन सब देशों का आभार प्रकट करता हूँ।  फिर एकबार इन धनिक राष्ट्रो ने मेरी उम्मीद को जगाया हैं। मैं आशाप्रद हुआ हूं। आप जहां से मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं एकबार मेरी बात पर विचार करना, प्लीज।

Drworldpeace.blogspot.com आनंदविश्व सहेलगाह वैचारिक लेखमाला हैं। मैं डॉ. ब्रिजेशकुमार आपसे बिनती करता हूँ कि हम सब साथ मिलकर दुनिया के शिक्षा और आरोग्य के बारें में जरूरतमंद लोगों की मदद करें। मैं एक स्कूल और अस्पताल के माध्यम से जरूरतमंदो से जुड़ना चाहता हूँ। मेरे देश और विश्व के धनी व्यापारी, (ऐथलेट्स) रमतावीरों, हॉलिवुड फिल्म स्टार्स एवं कलाकारों और नेताओं से अनुरोध करता हूँ कि मेरे पास विचार हैं। आप अपना आर्थिक योगदान करें। हमसब मिलकर नयेपन को अवतरित करेंगे।

आप मुझे मदद करे उसके ऋण स्वीकार हेतु आप जब भी मेरे देश में आएगें और जब तक रहेंगे मैं आपकी रहने की खाने-पीने की हमारी भारतीय परंपरा से खातिरदारी करुंगा। यहां आकर आपको एक रुपया भी खर्च करना नहीं पड़ेगा। ये पारस्परिक प्रेम का काम हैं। अभी बस इतना ही कहता हूं। योगदान हेतु अकाउन्ट नंबर आपकी ईच्छा के बाद और थोड़ी बहुत चर्चा के बाद सेन्ड करुंगा।

महान ईश्वर की प्रकृतिगत सैध्दांतिक मददगारी की अद्भुत मिसाल कायम करें। आज नहीं तो कल एक विचार को आकारित होना ही पडता हैं। 'आनंदविश्व की सहेलगाह' को बहतरीन मोड देने के लिए हम थोड़ा साथ चलें..! महान ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए अच्छे विचार के लिए आपका इन्तजार रहेगा..!

Contact me with great emotions.

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See Google Analysis..on 5 'th August 2025.









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Elephant appear to have self-awareness.

  गज: दृष्टि सदा विजयं करोति। आज एक विशालकाय प्राणी की बात करता हूं। उसके बारें में सबको पता है, फिर भी हाथी मुझे बचपन से आकर्षित करता रहा ह...

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