October 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, October 1, 2025

The key of healing...RAMA.
October 01, 2025 2 Comments


रामस्य दासोऽस्महं
रामे चितलय: सदा भवतु मे भो राम मामुघ्दर॥


"मैं राम का दास हूं, हमेशा श्रीराम मैं ही लीन हूँ। हे ! श्रीराम आप मेरा उद्धार करें।" शक्तिपर्व के साथ दशहरे की शुभ कामना..!

जीवन को अच्छा मोड़ देना या कुछ सिद्धांत का अनुसरण करना यही मनुष्य का मूलभूत कर्तव्य हैं। ये कोई सलाह नहीं लेकिन हमारी संस्कृति के महान चरित्रों का दर्शन हैं। भारतवर्ष तो कईं महानताएं अपने भीतर समाये बैठा हैं। सबकी बात करना संभव नहीं लेकिन आज के निमित्त रुप आज के उत्सव का शरण लेकर आगे बढ़ते हैं। आज विजय पर्व हैं। आज मर्यादापुरुषोतम श्रीराम की आदर्श पहचान को वंदन करने का उत्सव हैं। ये समय हैं जीवन को जाग्रत करने का...!


राम की शक्ति को समझना हैं; उनकी मर्यादा को समझना हैं या राम के पराक्रम को समझना हैं यह हम पर ही निर्भर हैं। राम के कुटुंबकम के भाव को समझना है, उनके राजकर्म को समझना हैं। एक मनुष्य के रुप में दूसरों का विचार करना, अधर्म को समझकर उसका नाश करना समझना हैं। राम से सिखना हैं, या राममय जीना हैं उसको समझना होगा। You are the key to healing not time. "आप ही हैं ठीक होने की कुंजी, समय नहीं !" हमारी जिंदगी हैं, हमें ही समझना पड़ेगा। श्रीराम जैसे चरित्रों से सीखना एक अच्छी कुंजी हैं। बुद्धिमत्तां वरिष्ठं हनुमानजी जो राम के दासत्व भाव में जीते हैं, उनसे सीखना भी एक कुंजी हैं। रामनाम की धुन से भारत में स्वतंत्रता स्थापित करने वाले महात्मा गांधी बापू से सीखना है तो उनसे सीखे। ये महानतम घटनाओं को आधारित करने वाले थे। उनके कारण सत्य स्थापित हुआ असत्य पराजित हुआ।

सत्य को स्थापित होते हुए कोई नहीं रोक सकता। विजय की एक ही संभावना हैं; सत्य..! सत्य के साथ चलने वालो के साथ कारवाँ सहज ही चल पडता हैं। उसके अनुसरण के लिए योजनाएँ नहीं बनानी पड़ती। वो स्वयंभू प्रकट होती हैं। उसे हम शक्ति कहे तो गलत नहीं। रामजी का सत्य पालन रामजी की जीवन मर्यादाएं शक्ति पूंज से कम नहीं हैं। राम हैं वहां   सत्य हैं इसीलिए जहाँ राम हैं वहाँ विजय हैं। द्वापर युग में मनुष्य के जीवन के आदर्श को स्थापित करने का काम रामजीने किया था। ये हमारी धरोहर रुप घटना हैं। उसे बचाएं रखना कोई एक व्यक्ति का काम नहीं हैं। फिर भी कोई एक व्यक्ति प्रयास करता है तो उसका विजय तो निश्चित ही हैं।

इस दिव्यपर्व और विजय पर्व पर हमें सज्जन शक्तियां के बारे में ही सोचना हैं। हां, उसमें भी कोई पूर्वग्रह रखकर सज्जन शक्ति में भी रावण को देखना भी एक दृष्टि हैं। उसका दहन करने का प्रयास करते रहना भी एक मार्ग हैं। उसके परिणाम के बारे में चर्चा करने का मेरा मन नहीं हैं। क्योंकि मुझे रामजी की निश्रा, चितलय: पसंद हैं। "रामो राजमणि सदा विजयते" राम का केवल स्मरण लाभप्रद है लेकिन समष्टि के कल्याण के लिए राम के आदर्शो का अनुसरण चाहिए। सनातन सत्य के विजय की यह कुंजी हैं। यह कुंजी का प्रयोग व्यक्ति समूह या सृष्टि का कोई भी स्थान में बसा राष्ट्र भी कर सकता हैं। क्योंकि आदर्श राम सबके हैं। और विजय पर सबका अधिकार हैं। सत्य के मूल मंत्र पर किसीका अधिकार हरगिज नहीं होता।

आज राम दैहिकरूप से अदृश्य हैं, लेकिन वर्तनरुप से, वचन रुप से उनके आदर्श प्रस्थापित हैं। रामजी की उस सनातन परंपरा को शत शत वंदन...!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA
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