October 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, October 29, 2025

Narrative is right or wrong !?
October 29, 20251 Comments

कहानियाँ सच्ची हो या झूठी उसकी असर तो होती हैं।

क्यों होता है ऐसा..सोचा है कभी ?

Narrative की कुछ डेफिनेशन रख रहा हूं। वैसे कहानी को हम कथा, स्टोरी, वृतांत, घटना, आख्यान जैसे शब्दों से जानते हैं। कहानियों का असर बड़ा लाज़वाब होता हैं। छोटे बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक कहानी का आकर्षण रहा हैं। इसके कईं कारण भी हैं। हम सब उत्सुकता से भरे हैं। जिज्ञासावश और 'अब क्या होगा ?' जैसे सवालो का खिंचाव हमें कहानी की ओर सहज ले जाते हैं। धीरे धीरे कहानी के प्रति हमारा अनुराग बढता हैं। ये सभी के साथ होता आया हैं। युगों से रही यह परंपरा मनुष्य का मूलभूत स्वभाव भी बन गई हैं। हमारे भीतर की सोच भी..!


जहाँ भी ये तीन सवाल खड़े होंगे वहां से कहानी शुरु होगी।
ये कैसे हुआ ?
इसके आगे-पीछे क्या हुआ था ?
और अब क्या होगा ?

इन सवालों पर घोर किजिए तो पता चलता है। इनमें भूत-भविष्य और वर्तमान छिपे हुए हैं। इनमें जीवन हैं, इनमें कुछ सिखाने वाली बात हैं। कहानी के मूलभूत आकर्षण का यही सच हैं। देखते हैं कुछ व्याख्याएं;

The description of events in a story.
कथा में घटनाओं का वर्णन।
The process or skill of telling a story.
कहानी सुनाने की प्रक्रिया या कला वृतांत आख्यान।

कहानियां बड़ी ही रोचक होती हैं। आज तो कहानी तीन पहलूओं से अपना अस्तित्व बनाए बैठी हैं। कहानी को पढ़ना-सुनना और देखना भी संभव हुआ हैं। आज के दौर में हम फिल्म, सिरियल या वेब-सिरीज को भी कहानी ही मानेंगे। जहाँ घटना आकारित होती हैं वहां कहानी शुरु होती हैं। चाहे वो व्यक्ति-विचार या वस्तु को लेकर या विस्तार को लेकर चलती हो।

अब कहानी को घडने की बात आती हैं। घटना को घडा भी जाता हैं। एक शब्द अभी चल रहा हैं, 'नेरेटिव को सेट करना' यानि कहानी या वृतांत ऐसे बनाना के लोगों का 'माईन्ड सेट' अपने हिसाब से बनता चला जाए। कहानी की मूलभूत असर का ज़रिया बनाकर कुछ वैयक्तिक या सामूहिक स्वार्थ को पूरा किया जा सके। आज समाज इस भयंकर बिमारी में फंसा जा रहा हैं। किरदार को पैदा किए जा रहे हैं। वो एक माहौल खड़ा कर रहे हैं। लोग जिज्ञासावश उसकी असर में आ जाते हैं। एक ही बात का ज़िक्र एक दिन सच में बदल जाता हैं। ये कहानी वृतांत की असर हैं। कभी-कभार तर्क का भी अच्छी तरह इस्तेमाल होता हैं। मनुष्य की दौड को हल्के से मोड़ दिया जाता हैं। और जब एक ही दिशा में सब चलते या दौड़ते जाते हैं तो सच अकेला पड़ जाता हैं। कहानि जब झूठ का सहारा लेकर चलती हैं तो विनाश तय होता हैं। इसे व्यक्ति या समूह के विनाश से भी समझ सकते हैं।

आज के समय में सबसे अधिक राजनीतिक गतिविधियां नेरेटिव का दामन थामकर चल रही हैं। कईं स्वार्थ साधकों ने मनुष्य स्वभाव की रगों को पकड़ लिया हैं। रगों में दौडते खून के साथ विचार के संक्रमण को झड दिया हैं। सच्ची बातें कहीं पर खो रही हैं। इससे भयंकर मंजर दूसरा क्या हो सकता हैं। आज हम देखते हैं, विश्व को सही दिशा देनेवाले कईं राजनीतिक किरदारों को स्वार्थसाधकों द्वारा प्रेरित किया जा रहा हैं। एक कहानी बनाकर या फिर 'विचार सेटअप' तैयार करके विशाल जनमानस को ठगा जा रहा हैं। इससे संसार को क्या मिलेगा ? उस कहानी के इन्तेज़ार में भी कईं लोग हैं..? शायद उनके दिमाग में अंदाज भी चल रहे होंगे..! परिणाम ठीक आयेगा तो ईश्वर की सनातन कृपा बनी रहेगी।

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Wednesday, October 22, 2025

Dr.Brijeshkumar.
Catch the difference of two big words.
October 22, 2025 2 Comments

मानवीय जीवन का संबंध विचार से जुड़ा हैं।

विचार हमें उच्चतम स्थिति देते हैं।

An intellectual is a person who engages in critical thinking, research, and reflection about the nature of reality, especially the nature of society and proposed solutions for its normative problems. Definition by Wikipedia.

एक बुद्धिजीवी वह व्यक्ति होता है जो वास्तविकता की प्रकृति, विशेष रूप से समाज की प्रकृति और उसकी मानक समस्याओं के लिए प्रस्तावित समाधानों के बारे में आलोचनात्मक चिंतन,अनुसंधान और चिंतन में संलग्न होता है।


Philosophy is the study of general and fundamental problems concerning matters such as existence knowledge, values, reason, mind, and language. It is distinguished from other ways of addressing fundamental questions (such as mysticism, myth) by being critical and generally systematic and by its reliance on rational argument. It involves logical analysis of language and clarification of the meaning of words and concepts.
Definition by Wikipedia.

दर्शनशास्त्र अस्तित्व, ज्ञान, मूल्य, तर्क, मन और भाषा जैसे विषयों से संबंधित सामान्य और मौलिक समस्याओं का अध्ययन है। यह मौलिक प्रश्नों (जैसे रहस्यवाद, मिथक) को संबोधित करने के अन्य तरीकों से आलोचनात्मक और सामान्यतः व्यवस्थित होने और तर्कसंगत तर्क पर अपनी निर्भरता के कारण अलग है। इसमें भाषा का तार्किक विश्लेषण और शब्दों एवं अवधारणाओं के अर्थ का स्पष्टीकरण शामिल है।

दोंनो शब्दों की व्याख्या कुछ विचार को जन्म देती हैं।  पहेली नज़र में कुछ भेद नजर नहीं आता हैं। मगर एक दो बार पढ़ने पर काफ़ी कुछ समझ में आता हैं। "फिलसूफी मूल्य आधारित होती हैं और मौलिक रहस्य को प्रकट करती हैं।" इन दो वाक्यों ने मुझे इस पर सोचने के लिए मजबूर किया हैं। अपनी सामान्य बुद्धि से मुझे ऐसा लगता है बौद्धिकता और फिलसूफी दोनों अलग हैं। बोधिकता एक मापदंड भी हैं। किसी विषय पर अपनी क्षमता प्रदर्शित करती हैं। शायद उसे योग्यता के प्रमाणपत्र में भी बाँधा जा सकता हैं। उसका मापन भी हो सकता हैं। उसे बढ़ाया जा सकता हैं। यह मनुष्य की सोच का एक स्तर भी हैं।

उसके सामने फिलसूफी अनुभव जगत को प्रदर्शित करती हैं, मौलिक चिंतनशीलता को दर्शाती हैं। इसे वैयक्तिक व्यवहार से गहरा नाता हैं। मनुष्य जीवन के आधार पर इसकी स्वीकार्यता काफ़ी बढ़ जाती हैं। इसे हम 'आत्मज्ञान' से जोड़कर भी समझ सकते हैं। फिलासफी प्राप्ति या सफलता से दूर आनंद को महसूस कराने वाली एक प्रक्रिया हैं। इसको निजी आनंद की अवस्था में से प्राप्त हुए विचार भी कहे तो गलत नहीं हैं। इससे जो तर्क मिलते हैं वो सर्वमान्य या प्रकृतिवाद से झुडे भी होते हैं। साम्यता, सत्यता, स्वीकार्यता और सत्त्वशीलता से जुड़ी अवधारण को हम दर्शनशास्त्र कहे तो गलत नहीं होगा।

उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति के नाम का जिक्र करता हूं। उनका नाम हैं  प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन। 1998 में भारतीय अमेरिकी 'अमर्त्य सेन' को आर्थिक विज्ञान में विश्व का सर्वोच्च 'नोबेल पुरस्कार' मिला था उनके  'डेवलपमेंट एज फ्रीडम' 'विकास के रुप में स्वतंत्रता' इस ग्रंथ के आधारित उन्हें 'कल्याणकारी अर्थशास्त्र' में उनके योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने अर्थशास्त्र में नैतिक आयामों को फिर से स्थापित किया था। उन्होंने सामाजिक विकल्प सिद्धांत, आर्थिक और सामाजिक न्याय, अकाल के आर्थिक सिद्धांत, निर्णय सिद्धांत, विकास अर्थशास्त्र एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य और सभी देशों की भलाई के उपायों में भी प्रमुख विद्वतापूर्ण योगदान दिया है। इनके जिक्र में केवल अर्थशास्त्र नहीं हैं। उसके साथ कल्याणार्थ या परमार्थ जुड़ा हैं। मतलब एक विषय की योग्यता से बढ़कर मानवजीवन के लिए उपकारक हैं, उसे इस हम 'फिलोसोफी' के रूप में समझ सकते हैं। भारतीय 'दर्शनशास्त्र' विश्व के लिए उपकारक हैं। मनुष्य मात्र के उत्कर्ष के लिए और इससे भी आगे जीवजगत के कल्याण के लिए हमारे ईश्वरीय अंश समान दर्शनशास्त्रीओं ने 'जीवन मूल्यज्ञान' एवं 'आनंदमय' विचार विमर्श दिये हैं।

आज नये साल की शुरुआत हो रही हैं। ईश्वर हम सबको कुछ ऐेसे कल्याणकार्य में जोड़कर हमारे जीवन को एक नई दिशा दे..! ऐसी भावना को प्रकट करते हुए प्रार्थना में लीन...!

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Wednesday, October 15, 2025

Emotions make possibility..!
October 15, 20250 Comments

સંવેદનામાંથી સંકલ્પ પ્રગટે છે..!

મા. શંકરભાઈ ચૌધરીના જીવનનો એક સુંદર પ્રસંગ.

વિજયપર્વની ઉજવણી પૂર્ણ થઈ ગઈ છે. આપણે સૌ એ શસ્ત્ર અને શાસ્ત્રના પૂજન સાથે સંકલ્પને પણ જાગૃત કર્યો હશે. હવે દિવાળી આવશે. ઉત્સાહનું પર્વ આવશે. નવું વરસ ફરીથી નવા સંકલ્પો સાથે શરૂ થશે. આજે માત્ર સંકલ્પની ફિલસૂફી લખવી નથી, હકીકત લખવી છે. એ પૂરી થયાની વાત લખવી છે. એક અનોખા ઈન્સાનની વાત કરવી છે.


એક ગાડીમાં પરિવાર મુસાફરી કરી રહ્યો હતો. ચોમાસાની ઋતુ હતી. રસ્તામાં વરસાદની ફરફર ચાલુ હતી. ગાડીમાં બેઠેલી એક નાનકડી બેબી બારીમાંથી અચરજ નિહાળી રહી હતી. બાળકના કૂતુહલની કોઈ સીમા હોતી નથી. રોડની બાજુમાં કેટલાંક છોકરાં તેમના પરિવાર સાથે ચાલી રહ્યાં હતાં. બેબી ગાડી બહારના બાળપણને જોતાં ગાડીનો કાચ ખોલવાનો પ્રયાસ કરે છે. તેના પપ્પાએ એમ કરતાં તેને રોકતાં કહ્યું : "બેટા, કાચ ન ખોલીશ, પલળી જવાશે...!" ત્યારે એ નાનકડી કૂતુહલ ભરેલી બેબી જે જવાબ આપે છે. એ જવાબમાં કેવી નિર્દોષ સંવેદના છે એ વાંચવા જેવી છે. "પપ્પા, આ લોકો પણ વરસાદમાં પલળી રહ્યાં છે. શું એમને ગાડી નહીં હોય કે તેઓ એમના ઘેર જતાં હશે ?" આ સામાન્ય જવાબ પેલા સંવેદનશીલ પુરુષને સ્પર્શી ગયો. તેમણે તરત ગાડી ઊભી રખાવી. પેલા રસ્તા ઉપર ચાલતાં લોકોને પૂછ્યું : "તમે બધાં ક્યાં જઈ રહ્યા છો. તમારાં ઘર ક્યાં છે..?" પેલા લોકોમાંથી એકે જવાબ આપ્યો. "અમારે ઘર નથી સાહેબ, જ્યાં આશરો મળે ત્યાં રોકાઈ જવાનું હોય છે. અમે વાદી છીએ, સાહેબ. ફરતાં રહીએ છીએ."

પેલા સાહેબની સંવેદના ચગડોળે ચડી. આ લોકો માટે શું થઈ શકે...? એ સવાલ એમના મન ઉપર સવાર થઈ ગયો. પોતાની દૃઢઇચ્છા શક્તિ અને કશુંક કરવાની ઉમ્મીદ આકાર ધારણ કરે છે. બનાસકાંઠા જિલ્લાના રાધનપુર પાસેના પોતાના ગામ વડનગરમાં તેઓ દસ વીઘા જમીનમાં વાદીનગર બનાવે છે. પોતાના વિસ્તારમાં આશરા વિનાનાના લોકો માટે એક સુંદર આશિયાનું તૈયાર થયું. સંવેદના સંકલ્પ બની ગઈ અને પછી હકીકત પણ...! એ સદગૃહસ્થ એટલે આપણા વિધાનસભાના અધ્યક્ષ માનનીય શંકરભાઈ ચૌધરી. તેમને હું ક્યારેય મળ્યો નથી. પણ તેમની વાતો સાંભળી છે. રાજનીતિ એટલે જ સેવા. રાજનીતિ એટલે જ સંવેદના. પોતાના દેશ માટે અને સમગ્ર માનવજાત માટે કેટલું કરી શકાય એવી દૃષ્ટિથી રાજનીતિજ્ઞ ભરેલો હોવો જોઈએ. મા. ચૌધરી સાહેબ માટે આ વાત એક્દમ યોગ્ય લાગે છે.

મા.શંકરભાઈએ કરેલો એક બીજો સંકલ્પ પણ યાદ આવે છે. એમણે જ્યાં સુધી બનાસકાંઠામાં નર્મદાનાં નીર ન આવે ત્યાં સુધી પલંગ ઉપર ન સુવાની પ્રતિજ્ઞા લીધેલી. અને દૃષ્ટિવાન વડાપ્રધાન મા. નરેન્દ્રભાઈ મોદીના ઉત્કૃષ્ઠ પ્રયાસે બનાસકાંઠા હરિયાળો બન્યો. મા. મોદીજી પણ સંકલ્પબદ્ધ રાજનેતા છે. જ્યારે બનાસકાંઠા વિસ્તારમાં માં નર્મદાનાં નીર આવ્યાં ત્યારે શંકરભાઈએ પોતાની પ્રતિજ્ઞા પૂરી થતાં પલંગમાં સૂવાનું શરૂ કર્યું હતું. આવી વાતોથી રાજી થવાય છે. આવા નેતાઓથી પ્રદેશને સુખાકારી મળે છે. જન સમુદાયમાં પરિતોષ વ્યાપે છે. આજે બનાસકાંઠા જિલ્લાનું સહકારી ક્ષેત્ર ખૂબ જ પ્રગતિ કરી રહયું છે. બનાસ ડેરી એશિયાની પ્રથમ હરોળમાં આવી ગઈ છે. ખેડૂતનો આધાર પાણી અને પશુપાલન છે. જગતનો તાત ખેડૂત મહેનતથી ક્યારેય ડરતો નથી. કેવળ આ બે બાબતે સદ્ધરતા આવી જાય તો પછી ખેડૂત બાપરો બિચારો પણ રહેતો નથી. મહેનતના જોરે એ બધું કરી જાણે છે. એક નેતાની અંગત સંવેદનશીલતા પ્રબળ હોય ત્યારે આ બે જરૂરિયાતો સો ટકા પૂરી થતી હોય છે. ગુજરાતનો મોટાભાગનો માનવ સમુદાય ખેતી અને પશુપાલન ઉપર નિર્ભર છે. એ વાત સૌ કોઈ જાણે છે.

આ બે સંકલ્પોની વાત મૂકીને હું શંકરભાઈને વંદન પાઠવું છું. જે સંકલ્પિત છે એ જ સમર્થતાને વરે છે. એ સત્ય સનાતન છે. આજે ગુજરાત રાજ્યની વિધાનસભાના ઉચ્ચ પદે તેઓ બિરાજમાન છે. એના મૂળમાં પોતાની સંવેદના છે, પોતાનો સંકલ્પિત સ્વભાવ છે. પોતે ખેડૂતનું સંતાન છે. અને બનાસકાંઠા તો સંસ્કૃતિની ધરોહરને સાચવીને બેઠો છે. આજે પણ આ વિસ્તારના લોકોની મહેમાનગતિમાં મીઠાશ છે. તેમના ખોરાકમાં સાત્વિકતા છે. અને ત્યાં ભોળપણ ભરેલું લોકજીવન છે. એટલે એમનામાં ખુમારી છે. એ ધરતીના ધાવણમાં સત્વ ભરેલું છે. એ ભોળા પ્રદેશના માનવ શંકરભાઈ એટલે નોખા તરી આવે છે. એમની વાણીમાં અને વર્તનમાં મીઠાશ આગવી તરી આવે છે. આમ તો અભાવોમાંથી જ ખરેખરો ઇન્સાન પેદા થતો હોય છે. અભાવો તેનામાં સંકલ્પ વાવે છે. કશુંક કરવાની પ્રતિજ્ઞાઓ વાવે છે. પછી શરૂ થાય છે એક જીવનની અદ્ભુત યાત્રા..! અને એ યાત્રા સુંદર મુકામ કરનારી બનતી જાય છે. હકીકતો ખરેખરો આકાર સજીને ઊભી થાય છે. ક્યારેક એ સપનાં લઈને નિકળી પડનારો કોઈ માણસ આગવી ઓળખે માનનીય વિધાનસભાના અધ્યક્ષ સ્થાને પહોંચી જાય છે. જિંદગી જ્યારે સંકલ્પિત યાત્રા બની જાય પછી એ અનેક અચરજો ઊભાં કરતી હોય છે.

મનુષ્ય જીવનના વૈયક્તિક સંકલ્પ પૂરાં થતાં આપણે જોઈએ છીએ. પરંતુ જ્યારે સંકલ્પ સમષ્ટી માટે થાય છે ત્યારે એમાં ઈશ્વરીય શક્તિ ભળતી હોય છે. જ્યારે માનવ બીજાનો વિચાર કરવાનું શરૂ કરે પછી એને રોકવો મુશ્કેલ છે. એની ગતિમાં નદીના જેવું ગાંભીર્ય છવાતું જાય છે. નદીના જેવી ગતિ અને લાંબી મજલની અથાક યાત્રા સંભવ બને છે. હિન્દુ ધર્મના તહેવારો મનુષ્ય માત્રમાં નવું ચૈતન્ય ભરવા માટે આવે છે. આ ચેતનાની અનુભૂતિ એ જ મનુષ્ય હોવાની ઓળખ..! એનો સથવારો મળી જાય પછી જીવન ખરેખરું જીવવા જેવું લાગતું હોય છે. કેટલાક પ્રસંગ, કેટલીક ઘટનાઓ અને કેટલાક ઉત્સવો જીવનની દિશાના માર્ગદર્શન માટે તો આવે છે. આ બધામાંથી આપણે શીખીએ છીએ. આખુય જગત શીખે છે. અને જે શીખે છે એ વિકસે છે, એ નિર્વિવાદ વાત છે.

'વિજયપર્વ' ફરી ફરી આપણા સંકલ્પોની યાદ તાજી કરાવવા આવે છે. વિજયા દસમી એટલે કે દશેરા પહેલાં શક્તિનું આરાધના પર્વ આવે છે. એટલે સંકલ્પ કરતાં પહેલાં તપસ્યા કરવી પડે, સાધના કરવી પડે. આ માત્ર સંયોગ નથી, તેમાં સત્યતા છે. આવાં ઈશ્વરીય બળોને સમજીને આગળ વધતા રહેલાં લોકોને કાયમ શત શત નમન હોય. આવી જ કોઈ ઈશ્વરીય સંકલ્પનાના સાક્ષી બનીને કામ કરનારા મા. શંકરભાઈ ચૌધરીને દિલથી સલામ...!

ડૉ.બ્રિજેશકુમાર ચંદ્રરાવ.
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Tuesday, October 14, 2025

Nature of the Human Heart..!
October 14, 20250 Comments

 Thought about Humanity and Our inner Conection.

मानवता और हमारे आंतरिक संबंध के बारे में विचार..!

विचार की कृपणता या दारिद्रय बहुत ही विचित्र स्थिति हैं। आज की भागदौड भरी जिंदगी में हम काफ़ी कुछ पा रहे हैं। भौतिक निर्भरता का ये दौर है, समय की मांग के अनुसार इसका स्वीकार भी हैं। जिंदगी थोड़ी बहुत ज्यादा गतिमान हैं इसलिए...! मगर फिर भी हमें कुछ ओर ही पर्ल आनंदित करते हैं। कभी कभार अकेलेपन का साया ठीक लगता हैं कभी कभार समुदाय में जीने का मन करता हैं। भौतिक आयामों के बीच घुटन सी महसूस होती हैं। हम भीतरी संबंध के प्रति ऐसे ही ढलने लगते हैं। ये हमारी मनुष्य होने की पहेली और आख़री निशानी हैं। मानवता का एक मतलब हमें शांतिपूर्वक साथ में रहना हैं। हमें किसी दूसरे का सहवास चाहिए। यहीं मनुष्य होने की भीतरी चेतना हैं।


Special thanks to SADGURU for quate

सद्गुरु का इस विचार को लेकर एक बहुत ही सुंदर क्वाॅट हैं; "When your Humanity is in full flow, you reach out to life around you. This is not morality  this is the nature of the Human Heart. जब आपकी मानवता पूर्ण प्रवाह में होती है, तो आप अपने आस-पास के जीवन तक पहुँचते हैं। यह नैतिकता नहीं है - यह मानव हृदय का स्वभाव है।" मुझे इस बात का जिक्र पढ़ते ही आदिकाल याद आ गया। पुरातन काल में आदिमानव प्राणी सहज जीवन व्यतीत करता था। ऐसी कौन-सी घटना हुई होगी जो उनको सोचने के लिए मजबूर कर गई होगी..!? एक सवाल मन में खडा हुआ। थोड़ा बहुत सोचने पर ख्याल आया जब पहेली बार उसको पता चला होगा "मैं कैसा दिखता हूँ ?"

तब शायद पहलीबार एक अचंभित घटना आकारित हुई होगी। और जब उस मानव ने अपने जैसा कोई चेहरा देखा होगा तब दूसरी एक अचंभित घटना घटित हुई होगी। इस साम्यता को उसने नज़रअंदाज नहीं कीया होगा। उसको उसकी मानव सहज वृत्ति ने झकझोर दिया होगा। इसे मैं 'नेचर ओफ द ह्युमन हार्ट' कहता हूं। इसे मैं मानवता की प्रज्वलन घड़ी कहता हूं। तब शायद झुंड में रहेना का विचार संभव हुआ होगा। यहीं से संघ जीवन का प्रारंभ भी हुआ होगा। मैं प्रामाणिक रुप से स्वीकार करता हूं कि मेरी कल्पना को पंख देनेवाला आदिकाल हैं। आदिकाल के सत्य के साथ हम आज भी हैं। उस वक्त मानव को दूसरे मानव की संगत पसंद थी। आज भी हम संगत-साथ-सहवास के लिए साथी ढूँढ रहे हैं। अकेले रहना ईन्सान की फ़ितरत ही नहीं। सद्गुरु कहते हैं : "मानवता के पूर्ण प्रवाह में हमें बहना हैं, सचमुच हम जीवन को प्राप्त कर सकेंगे। वैसे तो यहीं हमारा भीतरी स्वभाव हैं। हमारे हृदय की असलियत भी..!

Morality उचित-अनुचित विचार के सिद्घांत हैं उसे हम नैतिकता भी कहते आये हैं। शायद ये हमारी मानवीय संबंध और सभ्यता से प्रकट हुई परंपरागत व्यवस्था व्यापार हैं।
Nature यानि प्रकृति, ब्रह्मांड में स्थित समस्त पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि और उसमें होने वाली सब क्रिया, जो मानव-निर्मित या प्रेरित नहीं हैं। एक दूसरे अर्थ में किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषताएँ या उसका स्वभाव जिसे हम 'नेचर' कहते हैं।

अब, सद्गुरुजी की बात समझ में आ जाती हैं। वैसे तो सद्गुरु को समझना कठिन हैं। फिर भी उनको समझने के लिए पूर्वग्रह रहित मस्तिष्क होना आवश्यक हैं। बाद में देखिए जीवन के काफी-कुछ पहलू सहज ही समझ में आएगें। मुझे ऐसा प्रतीत होता हैं।

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Wednesday, October 8, 2025

Life is full of existence.
October 08, 20250 Comments

 Existence is a wonderful phenomenon.

अस्तित्व एक अद्भुत घटना है।

अस्तित्व का दूसरा नाम वजूद भी हैं। सृष्टि वजूद से भरी हैं। अस्तित्व का आनंद ईसी में छिपा हुआ हैं। जीवन कोई सामान्य घटना नहीं हैं। ये अस्तित्व की एक अद्भुत घटना हैं। हम वजूद से इस संसार में पैदा हुए हैं। जन्म नैमित्तिक कर्म हैं। जन्म से हम एक जीवन को पाते हैं। जीवन की गति अविरत और अविश्रांत रुप से चलती रहती हैं। सांस के साथ कुछ उम्मीदें पलती हैं। मन उड़ान के हौसलों से भर जाता हैं। हृदय अच्छे भाव से भर जाता हैं। मस्तिष्क में सम्यक दृष्टि का आविर्भाव पनपता हैं। इससे जीवन का वजूद समझ में आता हैं।


अस्तित्व के आनंद में रहेना भी जीवन की खूबसूरती दर्शाता हैं। ब्रह्मांड में शक्यताएं भरी हैं। संभावनाओं से जगत भरा पड़ा हैं। इनमें से हमारे जीवन के वजूद को ढूंढना हैं। मनुष्य के रुप में वजूद सार्वजनिक भी होता है और वैयक्तिक भी होता हैं। सार्वजनिक वजूद को हम कल्याण सेवा या फिर परोपकार से महसूस कर सकते हैं। वैयक्तिक वजूद हमारी सफलताएं हमारे आनंद के प्रदर्शित करती हैं। मनुष्य के रुप में पहले अपने को समझना हैं। अपनी अच्छाई बुराई के भेद को समझना हैं। जब ये मुकाम ठीक होगा तब समष्टि का वजूद समझमें आता हैं। जब तक वैयक्तिक वजूद से झूडे है तब तक हमारा जीवन एक दायरे में रहेग़ा। लेकिन जब ये दायरे टूटते हैं तब हम विशालता के संपर्क में आते हैं। तब हमारी संकल्पनाएं नयेपन से भर जाती हैं। वैयक्तिक ज्ञान सामूहिक हित के कामों में लगता है तब हमारे अस्तित्व का आनंद प्रकट होता हैं।

यहां एक चीटि का भी अस्तित्व हैं। वो नन्हीं सी चीटि जब अपने वैयक्तिक बल से गुड़ या कुछ मीठा पाती है, ये उसका निजी आनंद हैं। लेकिन वो उसे अपनी बिरादरी के लिए खुला छोड़ देगी तब सहअस्तित्व का उत्सव खडा हो जाएगा। यह एक चीटि के जीवन का सुंदर वजूद कहलाएगा। मनुष्य जीवन के सुंदर अस्तित्व का समष्टि के कल्याण में गुल मिल जाना ही अद्भुत घटना कहलाएगी। जीवन का आनंद इसी प्रक्रिया में छिपा हैं। सचमुच अस्तित्व का आनंद ही जीवन हैं और हमारा बजूद भी...! जिसका वजूद बड़ा उसका जीवन साफल्य के प्रति प्रयाण सहज होगा। सृष्टि के रंगमंच का यही सत्य हैं।

existence को दूसरे शब्द में समझने का प्रयास करे तो
A way of living, especially when it is difficult.

'कठिनाई से गुज़ारा या जीवित रहने की स्थिति' ऐसा भी एक ओर अर्थ  निकलकर सामने आता हैं। कठिनाईयों से सहज बाहर निकलना और अपने आपको संभाले रहना एक सुंदर घटना हैं। 'A way of living' इसे हम जीने का खूबसूरत सफर कह सकते हैं। वैयक्तिक और सामूहिक Livingness जीवंतता इसे कहते हैं।

संसार में कईं व्यक्तियों ने इसे मूल रुप से प्रस्थापित किया हैं। कई संस्थाएं इसका अनुसरण करके अपना इतिहास कायम कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर भारत का एक संगठन जिसे ' राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' RSS के नाम से हम जानते हैं। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार उसके स्थापक थे। उस संगठन के इस वर्ष सो साल पूरे हो रहे हैं। दूसरा एक भक्तिमार्गीय एवं आध्यात्मिक संगठन 'स्वाध्याय परिवार' हैं। वो भी शतक पूरा कर रहा हैं। परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री इस संगठन के प्रणेता थे। वैयक्तिक रुप में देखे तो महात्मा गांधी, डाॅ.भीमराव बाबासाहब आंबेडकर, सरदार पटेल जैसे कईं चरित्र हमारे सामने आएंगे। इससे भी आगे कई संतपुरुष के नाम भी सामने आते हैं। इन सब के अस्तित्व को शत शत नमन करता हूं।

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Wednesday, October 1, 2025

The key of healing...RAMA.
October 01, 2025 2 Comments


रामस्य दासोऽस्महं
रामे चितलय: सदा भवतु मे भो राम मामुघ्दर॥


"मैं राम का दास हूं, हमेशा श्रीराम मैं ही लीन हूँ। हे ! श्रीराम आप मेरा उद्धार करें।" शक्तिपर्व के साथ दशहरे की शुभ कामना..!

जीवन को अच्छा मोड़ देना या कुछ सिद्धांत का अनुसरण करना यही मनुष्य का मूलभूत कर्तव्य हैं। ये कोई सलाह नहीं लेकिन हमारी संस्कृति के महान चरित्रों का दर्शन हैं। भारतवर्ष तो कईं महानताएं अपने भीतर समाये बैठा हैं। सबकी बात करना संभव नहीं लेकिन आज के निमित्त रुप आज के उत्सव का शरण लेकर आगे बढ़ते हैं। आज विजय पर्व हैं। आज मर्यादापुरुषोतम श्रीराम की आदर्श पहचान को वंदन करने का उत्सव हैं। ये समय हैं जीवन को जाग्रत करने का...!


राम की शक्ति को समझना हैं; उनकी मर्यादा को समझना हैं या राम के पराक्रम को समझना हैं यह हम पर ही निर्भर हैं। राम के कुटुंबकम के भाव को समझना है, उनके राजकर्म को समझना हैं। एक मनुष्य के रुप में दूसरों का विचार करना, अधर्म को समझकर उसका नाश करना समझना हैं। राम से सिखना हैं, या राममय जीना हैं उसको समझना होगा। You are the key to healing not time. "आप ही हैं ठीक होने की कुंजी, समय नहीं !" हमारी जिंदगी हैं, हमें ही समझना पड़ेगा। श्रीराम जैसे चरित्रों से सीखना एक अच्छी कुंजी हैं। बुद्धिमत्तां वरिष्ठं हनुमानजी जो राम के दासत्व भाव में जीते हैं, उनसे सीखना भी एक कुंजी हैं। रामनाम की धुन से भारत में स्वतंत्रता स्थापित करने वाले महात्मा गांधी बापू से सीखना है तो उनसे सीखे। ये महानतम घटनाओं को आधारित करने वाले थे। उनके कारण सत्य स्थापित हुआ असत्य पराजित हुआ।

सत्य को स्थापित होते हुए कोई नहीं रोक सकता। विजय की एक ही संभावना हैं; सत्य..! सत्य के साथ चलने वालो के साथ कारवाँ सहज ही चल पडता हैं। उसके अनुसरण के लिए योजनाएँ नहीं बनानी पड़ती। वो स्वयंभू प्रकट होती हैं। उसे हम शक्ति कहे तो गलत नहीं। रामजी का सत्य पालन रामजी की जीवन मर्यादाएं शक्ति पूंज से कम नहीं हैं। राम हैं वहां   सत्य हैं इसीलिए जहाँ राम हैं वहाँ विजय हैं। द्वापर युग में मनुष्य के जीवन के आदर्श को स्थापित करने का काम रामजीने किया था। ये हमारी धरोहर रुप घटना हैं। उसे बचाएं रखना कोई एक व्यक्ति का काम नहीं हैं। फिर भी कोई एक व्यक्ति प्रयास करता है तो उसका विजय तो निश्चित ही हैं।

इस दिव्यपर्व और विजय पर्व पर हमें सज्जन शक्तियां के बारे में ही सोचना हैं। हां, उसमें भी कोई पूर्वग्रह रखकर सज्जन शक्ति में भी रावण को देखना भी एक दृष्टि हैं। उसका दहन करने का प्रयास करते रहना भी एक मार्ग हैं। उसके परिणाम के बारे में चर्चा करने का मेरा मन नहीं हैं। क्योंकि मुझे रामजी की निश्रा, चितलय: पसंद हैं। "रामो राजमणि सदा विजयते" राम का केवल स्मरण लाभप्रद है लेकिन समष्टि के कल्याण के लिए राम के आदर्शो का अनुसरण चाहिए। सनातन सत्य के विजय की यह कुंजी हैं। यह कुंजी का प्रयोग व्यक्ति समूह या सृष्टि का कोई भी स्थान में बसा राष्ट्र भी कर सकता हैं। क्योंकि आदर्श राम सबके हैं। और विजय पर सबका अधिकार हैं। सत्य के मूल मंत्र पर किसीका अधिकार हरगिज नहीं होता।

आज राम दैहिकरूप से अदृश्य हैं, लेकिन वर्तनरुप से, वचन रुप से उनके आदर्श प्रस्थापित हैं। रामजी की उस सनातन परंपरा को शत शत वंदन...!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA
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Who is Care about you..!

  People who notice your silence, Care about you. जो लोग आपके मौन पर ध्यान देते हैं, वे आपकी परवाह करते हैं। एक गीत की कुछ पंक्तियां रखता ...

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